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बेबी कॉर्न की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

बेबी कॉर्न की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

बेबी कॉर्न के अंदर कार्बोहाइड्रेड, कैल्सियम, प्रोटीन और विटामिन विघमान होता है। वहीं, इसको कच्चा या पका कर भी खाया जा सकता है। अपने इन गुणाें की वजह से बेबी कॉर्न ने अपना एक बाजार विकसित किया है। 

अब ऐसी स्थिति में किसानों के लिए इसकी पैदावार बेहद ही फायदेमंद है। मक्का की खेती करने से किसानों को अधिकांश अच्छा लाभ ही प्राप्त होता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण इन दिनों दिखाई दे रहा है। 

आलम यह है, कि वर्तमान में किसान भाइयों को मक्के (Maize) का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से ज्यादा मिल रहा है। कुल मिलाकर भारत के अंदर मक्का, गेहूं और चावल के उपरांत तीसरे सबसे महत्वपूर्ण फसल (Crop) बन कर उभरा है। 

दरअसल, मक्के की खेती करने वाले किसानों को अच्छा मुनाफा हो रहा है। लेकिन, आज के दौर में मक्के की खेती विभिन्न प्रकार से किसान भाइयों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकती है, जिसमें बेबी कॉर्न (Baby Corn) का उत्पादन किसानों को दोगुना लाभ प्रदान कर सकता है। आगे जानेंगे बेबी कॉर्न और इसकी खेती के बारे में।

बेबी कॉर्न की बढ़ती खपत के चलते मांग में भी निरंतर वृद्धि 

भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में बेबी कॉर्न (Baby Corn) की खपत और मांग दोनों तेजी से बढ़ रही है। पौष्टिकता के साथ ही अपने स्वाद की वजह से बेबी कॉर्न (Baby Corn) ने अपना एक बाजार स्थापित किया है। 

वहीं, पत्तों के लिपटे होने की वजह से इसमें कीटनाशकों का असर नहीं होता है। इस वजह से भी इसकी मांग काफी अधिक है। ऐसे में बेबी कॉर्न का उत्पादन कैसे होता है, पहले यह जानना अत्यंत आवश्यक है।

वास्तविकता में बेबी कॉर्न (Baby Corn) मक्के की शुरूआती अवस्था है, जिसे अपरिपक्व मक्का अथवा शिशु मक्का भी कहा जाता है। मक्के की फसल में भुट्टा आने के उपरांत एक निर्धारित समय में इसको तोड़ना पड़ता है।

सालभर में 4 बार उपज के साथ मवेशियों के लिए चारा 

बेबी कॉर्न (Baby Corn) का उत्पादन किसान भाइयों के लिए अत्यंत फायदेमंद होता है। बतादें, कि बेबी कॉर्न की बुवाई होने के बाद 50 से 55 दिन में उत्पादन लिया जा सकता है। 

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इस तरह किसान एक साल में बेबी कॉर्न (Baby Corn) की 4 फसलें कर सकते हैं, जिसमें किसान प्रति एकड़ 4 से 6 क्विंटल बेबी कॉर्न की उपज ले सकते हैं। साथ ही, मक्के की फसल से बेबी कॉर्न (Baby Corn) तोड़ लेने के पश्चात पशुओं के लिए चारे की व्यवस्था भी सहजता से हो जाती है। किसान 80 से 160 क्विंंटल हरे चारे का उत्पादन कर सकते हैं।

किसान बेबी कॉर्न की तुड़ाई कब करें 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि दक्षिण भारत में वर्षभर बेबी कॉर्न की खेती की जा सकती है। वहीं, उत्तर भारत में फरवरी से नंवबर के मध्य बेबी कॉर्न की पैदावार की जा सकती है। 

मक्का अनुसंधान निदेशालय पूसा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेबी कॉर्न का उत्पादन सामान्य मक्के की खेती की भांति ही है। 

हालाँकि, कुछ विशेष सावधानियां बरतने की अत्यंत आवश्यकता होती है, जिसके अंतर्गत किसान को बेबी कॉर्न के उत्पादन के लिए मक्के की एकल क्रास संकर किस्म की बुवाई करनी चाहिए। किसान एक हेक्टेयर में 20 से 24 केजी बीज का इस्तेमाल कर सकते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती के लिए ज्यादा पौधे लगाने चाहिए। इस कारण से उर्वरक का अधिक इस्तेमाल करना पड़ता है। साथ ही, तुड़ाई के समय का भी विशेष ध्यान रखना होता है। 

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इसके अंदर सिल्क आने के बाद 24 घंटे के अंदर तुड़ाई आवश्यक है। सिल्क की लंबाई लगभग 3 से 4 सेमी होनी चाहिए। तोड़ने के बाद पत्ते नहीं हटाने से बेबी कॉर्न दीर्घकाल तक ताजा रहते हैं।

कनाडा ने भारत से बेबी कॉर्न आयात की मांग की 

बेबी कॉर्न के अंदर विभिन्न प्रकार के पौष्टिक गुण विघमान होते हैं। इसमें प्रमुख रूप से बेबी कॉर्न के अंदर कैल्सियम, प्रोटीन, विटामिन और कार्बोहाइड्रेड होता है। 

वहीं, इसे कच्चा या पका कर भी खाया जा सकता है। अपने इन गुणों के कारण बेबी कॉर्न ने अपना एक बाजार विकसित किया है। बीते दिनों बेबी कॉर्न के आयात के लिए कनाडा ने भारत सरकार के साथ बातचीत भी की है।

बेबी कॉर्न की खेती: किसान की अधिक आय

बेबी कॉर्न की खेती: किसान की अधिक आय

बेबी कॉर्न (शिशु मकई) वास्तव में मकई के पौधे का वह मुलायम भुट्टा है, जिसे उस अवस्था में तोड़ लिया जाता है, जब उसमें रेशमी रेशे या तो बिल्कुल ही नहीं आये होते हैं या फिर उनके आने की शुरूआत हुई होती है। 

यही नहीं, इनमें निषेचन की क्रिया भी नहीं हुई होती है। इसे बेबी कॉर्न या शिशु मकई कहा जाता है। ये कच्चे भुट्टे ऊँगली या गुल्ली के आकार (1-3 सेमी. व्यास) के होते है और इसका स्वाद कुरकुरा एवं लाजबाव होता है। 

इसका उपयोग बतौर सब्जी के रूप में भी किया जाता है। अपनी हल्की मिठास व कुरकुरापन के कारण इसकी लोकप्रियता भारत तथा अन्य देशों में लगातार बढ़ रही है। 

बेबी कॉर्न खाने में अधिक पौष्टिक होता है। इसकी खेती में कीटनाशी रसायनों के छिड़काव की आवश्यकता नहीं पड़ती है, क्योंकि छिलके से पूरी तरह ढ़के होने के कारण इन पर कीटों का प्रकोप नहीं होता है। इसलिए स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से बेबी कॉर्न का सेवन लाभदायक है।

महत्व, उपयोग और लाभ 

बेबी कॉर्न के प्रमुख लाभ:

  1. पाचन में सुधार - मकई फाइबर से भरपूर होता है जो पाचन के लिए बहुत अच्छा होता है। यह कब्ज, बवासीर को रोकता है और यहां तक कि कोलन कैंसर के खतरे को भी काफी कम करता है।
  2. त्वचा की देखभाल- मक्का एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जो त्वचा को लंबे समय तक जवान बनाए रखने में मदद करता है।
  3. आंखों की देखभाल - मक्का बीटा-कैरोटीन का एक समृद्ध स्रोत है जो शरीर में विटामिन ए बनाता है और अच्छी दृष्टि के रखरखाव व रक्त के लिए आवश्यक है।
  4. भ्रूण के शुरुआती विकास में मदद - मकई में मौजूद फोलिक एसिड अजन्मे बच्चे में असामान्यताओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  5. गर्भावस्था के दौरान मतली और उल्टी को रोकें - बेबी कॉर्न में विटामिन बी-6 होता है। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि विटामिन बी-6 गर्भवती महिला में मतली और उल्टी का इलाज कर सकता है।
  6. दिल की रक्षा - आपके शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करके हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
  7. रक्तचाप को संतुलित करने में मदद - बेबी कॉर्न हमारे रक्तचाप के स्तर को नियंत्रित रखने में मदद कर सकता है क्योंकि इसमें पोटेशियम होता है।
  8. कैंसर को रोकें - मक्का एंटीऑक्सीडेंट का एक समृद्ध स्रोत है जो कैंसर पैदा करने वाले मुक्त कणों से लड़ता है। वास्तव में, कई अन्य खाद्य पदार्थों के विपरीत, खाना पकाने से वास्तव में स्वीट कॉर्न में उपयोगी एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा बढ़ जाती है। यह फेरुलिक एसिड नामक फेनोलिक यौगिक का एक समृद्ध स्रोत है, एक एंटी-कार्सिनोजेनिक एजेंट जिसे ट्यूमर से लड़ने में प्रभावी दिखाया गया है जो स्तन कैंसर के साथ-साथ यकृत कैंसर का कारण बनता है।
  9. एनीमिया को रोकता है - मकई इन विटामिनों की कमी के कारण होने वाले एनीमिया को रोकने में मदद करता है। मक्के में आयरन का भी महत्वपूर्ण स्तर होता है, जो नई लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक आवश्यक खनिजों में से एक है; आयरन की कमी एनीमिया का एक मुख्य कारण है।
  10. रक्त शर्करा को संतुलित करने में मदद - बेबी कॉर्न का ग्लाइसेमिक इंडेक्स नियमित कॉर्न से कम होता है।
  11. विटामिन का समृद्ध स्रोत - विटामिन ए, बी, ई और विटामिन बी-6 भी पाया जाता है

 ये भी देखें: बेबी कॉर्न की खेती (Baby Corn farming complete info in hindi)

उन्नत किस्में

बेबी कॉर्न के उत्पादन के लिए मकई की किसी भी किस्म का उपयोग कर सकते हैं किन्तु व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन के लिए अर्ली कम्पोजिट व वी०एल०-42 उपयुक्त पाई गई है। इसके अतिरिक्त एच.एम.-4, आज़ाद कमल (संकुल), एम०ई०एच०-114, एम०ई०एच०-133, बी०एल०-16, गोल्डन बेवी, प्रकाश, केशरी और पी०एस०एम०-३ किस्मों को बेबी कॉर्न की सफल खेती के लिए चुना जा सकता है।

मौसम व भूमि की तैयारी

उत्तर भारत में मार्च से अक्टूबर तक तीन फ़सलें ली जा सकती हैं। लगभाग 2 महीने में फसल तैयार हो जाती है। बेबी कॉर्न के लिए मिट्टी की आवश्यकताएं, तैयारी और फसल प्रबंधन पद्धतियां स्वीट कॉर्न और पॉपकॉर्न के समान ही हैं।

पहली जुताई डिस्क हैरो से तथा अगली 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करें तथा खेत को तैयार करने के लिए कल्टीवेटर का प्रयोग करें। बुआई के समय पर्याप्त नमी आवश्यक है।

बोवाई

बीज दर 20-25 किग्रा/हेक्टेयर की अनुशंसित की जाती है। इससे अधिक संख्या में भुट्टे पैदा होंगे और परिणामस्वरूप किसानों को अधिक लाभ मिलेगा। किस्म के चयन के समय छोटे कद और उपजाऊ किस्मों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 

खुले परागण वाली किस्मों की तुलना में संकर किस्मों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि संकर किस्म फूलने में अधिक समान होते हैं। इस प्रकार उन्हें तोड़ने में केवल 4-5 समय की आवश्यकता हो सकती है। 

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इसके विपरीत किस्मों में फूल एक समान न होने के कारण कटाई में अधिक समय लगता है। छोटे कद की सामग्री को उच्च पौधों के घनत्व में अच्छी तरह से समायोजित किया जा सकता है।

पोधो से पोधो की दूरी

बेबी कॉर्न के लिए दो प्रणालियों का उपयोग किया जाता है। एक प्रणाली प्रति हेक्टेयर लगभग 58000 पौधों की मानक आबादी का उपयोग करती है, जहां ऊपरी बाली को अनाज मकई या स्वीट कॉर्न के लिए पौधे पर छोड़ दिया जाता है, और बाद की बालियों को बेबी कॉर्न के लिए काटा जाता है। 

दूसरी प्रणाली 45 सेमी x 20 सेमी की दूरी पर प्रति पहाड़ी 2 पौधों के साथ उच्च पौधों की आबादी का उपयोग करती है, जिसका जनसंख्या घनत्व 1,11,111 पौधे/हेक्टेयर है, जहां सभी बालियों को बेबी कॉर्न के लिए काटा जाता है। 

मानक पौधों की आबादी प्रति हेक्टेयर लगभग 46.5 क्विं. बिना भूसी वाली बालियां (4.65 क्विं. भूसी वाली बालियां) पैदा करती है, जबकि उच्च आबादी प्रति हेक्टेयर लगभग 93-10.6 0 क्विं. बिना भूसी वाली बालियां (9.3-10.60 क्विं. भूसी वाली बालियां) पैदा करती है।

पोषक तत्व प्रबंधन:

8-10 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी हुई गोबर की खाद तथा नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं जिंक सल्फेट 150-180:60:60:25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में प्रयोग करना आवश्यक है।

नाइट्रोजन का प्रयोग तीन भागों में करना चाहिए। फास्फोरस, पोटाश तथा जिंक सल्फेट की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन का 1/3 भाग बुआई के समय, 1/3 नाइट्रोजन बुआई के 25 दिन बाद तथा नाइट्रोजन का शेष भाग 40 दिन बाद खेत में फैलाना चाहिए। 

कीटनाशी प्रबंधन:

भारत में मक्के के चार प्रमुख कीट प्रचलित हैं। ये हैं चित्तीदार तना बेधक, गुलाबी तना बेधक, शूट फ्लाई और फॉल आर्मीवर्म । एकीकृत कीट प्रबंधन (आई.पी.एम.) का उद्देश्य रासायनिक, जैविक, नई फसल प्रणाली, सांस्कृतिक प्रथाओं में संशोधन, प्रतिरोधी किस्मों के उपयोग और यांत्रिक तरीकों जैसी तकनीकों के संयोजन के माध्यम से कीटों का प्रबंधन करना है। 

आईपीएम का वर्णन निम्नलिखित है:

  • ठूंठों को एकत्र करना एवं नष्ट करना।
  • ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई (संरक्षित कृषि के अंतर्गत अनुशंसित नहीं)
  • जाल फसल के रूप में सीमा में नेपियर घास का रोपण।
  • मक्के को लोबिया के साथ 2:1 के अनुपात में अंतरफसल करें।
  • अंकुरण के 7 और 15 दिन बाद ट्राइकोग्रामा चिलोनिस 8 कार्ड/हेक्टेयर (1,50,000 परजीवी अंडे/हेक्टेयर)
  • जब संक्रमण 10% से अधिक हो जाए, तो क्लोरेंट्रानिलिप्रोल 18.5 एससी @150 मि.ली./हेक्टेयर का छिड़काव करें।

प्राकृतिक शत्रु

  • अंडा परजीवी: ट्राइकोग्रामा चिलोनिस
  • लार्वा परजीवी: कोटेसिया फ़्लैवाइप्स
  • प्यूपलपैरासिटॉइड: ज़ैंथोपिमला स्टेममेटर, टेट्रास्टिचस हावर्डी
  • शिकारी: क्राइसोपर्ला कार्निया, कोकीनेलिड, मकड़ी, ईयर विग, ड्रैगन मक्खी, शिकार करने वाला मंटिड, पेंटाटोमिड बग, रेडुविड बग, डाकू मक्खी, रोव बीटल, ततैया

कटाई एवं उपज:

बालियों की कटाई (उभरने के 50-60 दिन बाद) तब की जाती है जब रेशम 1-3 सेमी लंबा हो जाता है, यानी रेशम निकलने के 1-3 दिन के भीतर। 

चारा मक्के की किस्मों की कटाई रेशम निकलने के समय की जाती है, जबकि अधिक गीली किस्मों की कटाई उस समय तक की जा सकती है जब रेशम लगभग 5-6 सेमी लंबे होते हैं। एक पौधे पर कई भुट्टे आ सकते हैं, तथा कई बार कच्चे, ताजे भुट्टे ले सकते हैं।

बेबी कॉर्न की तुड़ाई तीन दिन में एक बार करनी होती है और इस्तेमाल किए गए जीनोटाइप के आधार पर आम तौर पर 7-8 तुड़ाई की आवश्यकता होती है। अच्छी फसल में औसतन 15-19 क्विंटल/हेक्टेयर बेबी कॉर्न की कटाई की जा सकती है। 

हरे चारे की बिक्री से भी अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है, जिसकी उपज 250-400 क्विंटल/हेक्टेयर तक हो सकती है। बाद में हरे पौधे पशुओं के लिए उत्तम चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

भंडारण

कटे हुए बेबी कॉर्न को इसकी गुणवत्ता पर अधिक प्रभाव डाले बिना 10oC पर 3-4 दिनों तक संग्रहीत किया जा सकता है। दीर्घकालिक भंडारण और दूर के परिवहन के लिए, बेबी कॉर्न को नमकीन घोल (3%), चीनी (2%) और साइट्रिक एसिड (0.3%) घोल में डिब्बाबंद किया जाता है और प्रशीतित परिस्थितियों में संग्रहीत किया जाता है। बेबी कॉर्न को सिरके में भी संग्रहित किया जा सकता है। 

 ये भी देखें: स्वीट कॉर्न की खेती ने बदली प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान की किस्मत

बेबी कॉर्न के विभिन्न व्यंजन:

  • बेबी कॉर्न करी: इसमें बेबी कॉर्न को स्वादिष्ट मसाले और करी पत्तों के साथ पकाकर बनाया जाता है। इसे गरमा गरम चावल के साथ परोसा जा सकता है।
  • बेबी कॉर्न मंचूरियन: इसमें बेबी कॉर्न के टुकड़े को मैदा और मसालों के साथ फ्राई किया जाता है, और फिर इसे मंचूरियन सॉस के साथ परोसा जाता है।
  • बेबी कॉर्न फ्राइड राइस: इसमें बेबी कॉर्न को फ्राइड राइस में डालकर स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन तैयार किया जाता है।
  • बेबी कॉर्न सलाद: इसमें बेबी कॉर्न को ताजे सब्जियों और सलाद सॉस के साथ मिलाकर स्वादिष्ट सलाद तैयार किया जाता है।
  • बेबी कॉर्न करी पास्ता: इसमें बेबी कॉर्न को पास्ता और करी सॉस के साथ मिलाकर एक लाजवाब पास्ता व्यंजन बनाया जाता है।
  • बेबी कॉर्न टिक्का: इसमें बेबी कॉर्न को टिक्का मसाले के साथ मरिनेट करके ग्रिल किया जाता है और यह स्वादिष्ट स्टार्टर के रूप में परोसा जाता है।
  • बेबी कॉर्न सूप: इसमें बेबी कॉर्न को सूप में डालकर स्वादिष्ट और पौष्टिक सूप बनाया जाता है।
  • ये कुछ प्रमुख बेबी कॉर्न से बनाए जाने वाले विभिन्न व्यंजन हैं। इन्हें बनाना सरल होता है और इनका स्वाद अत्यधिक मनभावन होता है।

निष्कर्ष

बेबी कॉर्न एक उच्च मूल्य वाली फसल है जो 50-60 टन/हेक्टेयर हरे चारे के बोनस के साथ कम समय (लगभग 60-63 दिन) में अच्छा रिटर्न देती है। इसलिए, यह बहुफसली खेती के लिए सबसे उपयुक्त है। 

फसल खराब होने के समय यह आकस्मिक फसल के रूप में भी कार्य करता है। बेबी कॉर्न न केवल नकदी फसल है बल्कि कैच क्रॉप भी है। अधिक जानकारी के लिए आप नीचे दी गई वेबसाइट्स पर जाकर जानकारी ले सकते हैं ।

https://icar.org.in/crop-science/maize
https://ccari.icar.gov.in/dss/baby%20corn.html#land
https://ndpublisher.in/admin/issues/EAv67n1sa.pdf
Cultivation of infant maize (baby corn) - Agriculture Department, Government of Uttar Pradesh (upagripardarshi.gov.in)अंजू कापड़ी, शनि गुलैया और एच एस गौड़
गलगोटियास यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा
संबंधित लेखक ईमेल: anju.kapri@galgotiasuniversity.edu.in 
बेबी कॉर्न की खेती से सालभर में 3 से 4 बार कमाऐं मुनाफा

बेबी कॉर्न की खेती से सालभर में 3 से 4 बार कमाऐं मुनाफा

भारत के साथ साथ विश्वभर में बेबी कॉर्न की तेजी से मांग बढ़ रही है। बेबी कॉर्न का स्वाद सबको को पसंद आ रहा है। वर्तमान में बेबी कॉर्न होटलों और रेस्टोरेंट तक ही सीमित नहीं रह गए, इनकी घरेलू और विदेशी बाजारों में भी खूब मांग बढ़ रही है। 

बेबी कॉर्न को कृषकों के लिए कम वक्त में ज्यादा आय करने का सबसे शानदार विकल्प माना जा रहा है। किसान बेबी कॉर्न की फसल से सालभर में करीब 3 से 4 बार मोटी आय अर्जित कर सकते हैं। 

बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट, पौष्टिक तथा बिना कोलेस्ट्रोल का पौष्टिक खाद्य आहार है। इसके साथ ही इसमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें खनिज की मात्रा एक अंडे में पाए जाने वाले खनिज की मात्रा के बराबर होती है। 

बेबी कॉर्न के भुट्टे, पत्तों में लिपटे होने के कारण कीटनाशक रसायन से मुक्त होते हैं। स्वादिष्ट एवं सुपाच्य होने के कारण इसे एक आदर्श पशु चारा फसल भी माना जाता है। हरा चारा, विशेष रूप से दुधारू मवेशियों के लिए अनुकूल है जो एक लैक्टोजेनिक गुण है।

बतादें, कि बेबी कॉर्न स्वादिष्ट होने के साथ साथ पौष्टिक आहार भी है। दरअसल, इसके अंदर कैल्शियम, आयरन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन आदि विघमान हैं।

बेबी कॉर्न की फसल पर कीटनाशक दवाइयों का भी प्रभाव नहीं पड़ता है। बेबी कॉर्न का सबसे ज्यादा इस्तेमाल सलाद, सूप, सब्जी, अचार, पकोड़ा, कोफ्ता, टिक्की, बर्फी लड्डू हलवा और खीर के लिए किया जाता है। 

बेबी कॉर्न की खेती के लिए मृदा एवं सिंचाई ?

किसान बेबी कॉर्न की खेती दोमट मृदा में करके कम वक्त में अधिक लाभ अर्जित कर सकते हैं। किसानों को बेबी कॉर्न की फसल लगाने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए। इसके बाद की दो से तीन जुताई किसानों को कल्टीवेटर में पाटा लगाकर करनी चाहिए। 

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बेबी कॉर्न की बुवाई करते वक्त खेत की मृदा में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। इसकी फसल को तैयार होने के लिए करीब दो से तीन सिंचाई की जरूरत होती है। इसकी पहली सिंचाई के करीब 20 दिनों उपरांत दूसरी सिंचाई करें और तीसरी फूल आने से पहले करें। 

बेबी कॉर्न की प्रमुख उन्नत किस्में कौन-सी हैं ?

अगर आप भी बेबी कॉर्न की खेती करके कम समय में अधिक अधिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको बेबी कॉर्न की उन्नत किस्मों का भी चयन करना चाहिए। 

बेबी कॉर्न की खेती से बेहतरीन उपज हांसिल करने के लिए आप बी.एल.-42, प्रकाश, एच.एम.-4 और आजाद कमल किस्म की खेती कर सकते हैं। 

बेबी कॉर्न की तुड़ाई कब करनी चाहिए ?

किसान भाइयों को बेबी कॉर्न की फसल की तुड़ाई तीन से चार सेमी रेशमी कोपलें आने तक कर लेनी चाहिए। आपको ध्यान रखना है, कि बेबी कॉर्न की तुड़ाई करते समय गुल्ली के ऊपर की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए। 

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बेबी कॉर्न से होगी जबरदस्त कमाई ?

अगर आप भी बेबी कॉर्न की खेती से शानदार मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो आपको इसे सही ढ़ंग से करना चाहिए। ताकि आप प्रति हेक्टेयर पर 40 से 50 हजार रुपये की आसानी से कमाई कर सकते हैं। 

किसान बेबी कॉर्न की फसल से 1 साल में 3 से 4 बार तुड़ाई कर सकते हैं। ऐसा करने से किसान 1 साल में ही बेबी कॉर्न की फसल से 2 लाख से भी ज्यादा की आमदनी कर सकते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती (Baby Corn farming complete info in hindi)

बेबी कॉर्न की खेती (Baby Corn farming complete info in hindi)

दोस्तों आज हम बात करेंगे बेबी कॉर्न की खेती के विषय में, बेबी कॉर्न (Baby Corn) जिसे हम आम भाषा में मक्का या फिर भुट्टे के नाम से भी जाना जाता है। यह लोगों में बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय हैं लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं तथा विभिन्न विभिन्न तरह से इनकी डिशेस बनाते हैं। बेबी कॉर्न से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहे:

बेबी कॉर्न क्या है

बेबी कॉर्न मक्के का ही एक समूह है यानी आम भाषा में कहें तो या मक्के का परिवार है बेबी कॉर्न को मक्का या भुट्टा कहा जाता है। बेबी कॉर्न रेशमी तथा कोपलें की तरह दिखते हैं। किसान बेबी कॉर्न की कटाई तब करते हैं जब यह आकार में छोटे होते हैं और यह पूरी तरह से अपरिपक्व हो। बेबी कॉर्न जल्दी ही परिपक्व हो जाते हैं इसीलिए किसान इन की कटाई जल्दी कर देते हैं।कटाई के बाद बेबी कॉर्न को हाथों द्वारा खेतों से चुना जाता है।बेबी कॉर्न आमतौर पर दिखने में गुलाबी, सफेद, नीले, पीले रंगो के रूप में पाए जाते हैं। बेबी कार्न खाने में बहुत ही ज्यादा मुलायम और सौम्य होते हैं।इसीलिए यह बहुत ही ज्यादा दुनिया भर में मशहूर है। प्राप्त की गई जानकारियों से या पता चला है। कि बेबी कॉर्न एशिया में बहुत ही ज्यादा खाने तथा अन्य डिशेस में इस्तेमाल किया जाता है। 

 ये भी देखें: भविष्य की फसल है मक्का

बेबी कॉर्न से स्वास्थ्य को लाभ

बेबी कॉर्न खाने से स्वास्थ्य को विभिन्न विभिन्न प्रकार के लाभ होते हैं यह लाभ कुछ इस प्रकार है: सर्वप्रथम बेबी कॉर्न में मौजूद तत्व जैसे आयरन, विटामिन बी, फोलिक एसिड की काफी अच्छी मात्रा पाई जाती है। यह सभी आवश्यक तत्व शरीर में एनीमिया की कमी को दूर करने में सहायक होते हैं। न्यूट्रिएंट से कॉर्न परिपूर्ण होते हैं। बेबी कॉर्न सेहत के लिए काफी अच्छे होते हैं। फाइबर की मात्रा बेबी कॉर्न में काफी पाई जाती है। इसमें कैलोरी काफी कम होती है, वजन को कम करने में बेबी कॉर्न बहुत ही ज्यादा सहायक होते हैं। बेबी कॉर्न रक्त शर्करा के स्तर को पूरी तरह से नियंत्रित करता है

बेबी कॉर्न उत्पादन वाले राज्य

भारत में सबसे ज्यादा बेबीकॉर्न का उत्पादन करने वाले राज्य कुछ इस प्रकार है : जैसे बिहार कर्नाटक, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश इत्यादि राज्य है जहां बेबी कॉर्न की खेती उच्च मात्रा में होती है। बेबी कॉर्न सबसे ज्यादा राजस्थान और कर्नाटक में सर्वाधिक मात्रा में इसका उत्पादन होता है।

बेबी कॉर्न की खेती

बेबी कॉर्न की ख़ेती करना किसानों के लिए हर प्रकार से लाभदायक होता है, किसान बेबी कॉर्न की खेती 1 वर्ष में लगभग 3 से 4 बार करते हैं। बेबी कॉर्न की ख़ेती रबी के मौसम में की जाती है। इस खेती में लगभग 110 से 120 दिनों का समय लगता है। बेबी कॉर्न की फसल जायद के मौसम में लगभग 70 से 80 दिनों का समय लगाती है। बेबी कॉर्न की फसल खरीफ के मौसम में 55 से 65 दिनों का समय लेकर तैयार होती है। इन तीनों मौसम में किसान बेबी कॉर्न की फसल से आय का विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठाते हैं।

बेबी कॉर्न की खेती के लिए जलवायु

बेबी कॉर्न की खेती के लिए अच्छी धूप की व्यवस्था करना बहुत ही ज्यादा उपयोगी होती हुई।अच्छी जलवायु के साथ ही साथ 22 डिग्री सेल्सियस से लेकर 28 डिग्री सेल्सियस के तापमान की आवश्यकता पड़ती है।इन तापमान के आधार पर बेबी कॉर्न की फसल का उत्पादन उच्च कोटि पर होता है।

बेबी कॉर्न की खेती के लिए मिट्टी चयन

बेबी कॉर्न की खेती करने के लिए सबसे उपयुक्त और जो अच्छी मिट्टी का चयन किया जाता है वह मिट्टी बलुई दोमट मिट्टी है। अम्लीय मिट्टी में इस फसल को उगाया जाता है। खेतों में जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना चाहिए।

बेबी कॉर्न की फसल के लिए खेत को तैयार करना

सबसे पहले बेबी कॉर्न की फसल को तैयार करने से लिए खेत की अच्छी तरह से जुताई करनी होती है। फसल को उगाने के लिए भूमि में लगभग 15 टन हेक्टर फार्म यार्ड खाद की आवश्यकता होती है। किसान खेत की जुताई करने के लिए डिस्क हल का इस्तेमाल करते हैं। 


ये भी पढ़े: मक्का की खेती के लिए मृदा एवं जलवायु और रोग व उनके उपचार की विस्तृत जानकारी 

दो से तीन बार डिस्क हल से जुताई करने के बाद बेबी कॉर्न की खेती के लिए कल्टीवेटर द्वारा जुताई की जाती है।इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी को बारीक किया जाता है। ताकि बीजों का अच्छे से वातन के साथ-साथ बेहतरीन ढंग से अंकुरण हो सके। बेबी कॉर्न के मेड़ें और खांचे लगभग 45 से लेकर 25 सेंटीमीटर की दूरी पर बनाया जाता है।

बेबी कॉर्न के लिए बीज दर तथा दूरी

बेबी कॉर्न की खेती करने के लिए किसान उच्च कोटि की गुणवत्ता वाले बीज का इस्तेमाल करते हैं। फसलों के लिए किसान बीज का लगभग 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर भूमि में इस्तेमाल करते हैं। बेबी कॉर्न की फसल में खेतों की दूरी पौधों से लगभग 15 सेंटीमीटर की होती है। 


दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि हमारा यह आर्टिकल बेबी कॉर्न की ख़ेती (BabyCorn farming complete information in hindi) आपको पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल से आपने बेबी कॉर्न से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी प्राप्त की होगी। हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

स्वीट कॉर्न की खेती से किसानों को काफी लाभ होगा, सिर्फ इन बातों का रखें खास ख्याल

कृषक भाई स्वीट कॉर्न की खेती कर के शानदार मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। भारत ही नहीं विदेशों में भी इसे काफी पसंद किया जाता है। चाहें कैसा भी मौसम हो स्वीट कॉर्न का स्वाद सब की जुबां पर रहता है। विशेष तौर पर पहाड़ों की सेर के समय और बारिश के दौरान स्वीट कॉर्न को बड़े ही चाव से खाया जाता है। बतादें, कि स्वीट कॉर्न मक्के की मीठी किस्म है। इसकी फसल के पकने से पूर्व ही दूधिया अवस्था में इसकी कटाई की जाती है। स्वीट कॉर्न भारत के साथ-साथ विदेश में भी बेहद पसंद किया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इसकी खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं।

स्वीट कॉर्न की खेती किस तरह होती है

स्वीट कॉर्न की खेती मक्का की खेती की भांति ही होती है। स्वीट कॉर्न की खेती में मक्का की फसल पकने से पूर्व ही तोड़ दी जाती है। इस वजह से किसानों को बेहद शीघ्रता से अच्छी कमाई मिलती है। स्वीट कॉर्न के साथ-साथ फूलों की खेती करके किसान एक ही वक्त में दो गुना ज्यादा धन कमाने के लिए गेंदा, ग्लेडियोलस एवं मसालों की सहफसली खेती भी कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप एक खेत में पालक, मटर, गोभी और धनिया भी उगा सकते हैं।

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स्वीट कॉर्न को अधिक समय तक स्टोर करके ना रखें

स्वीट कॉर्न की फसल कटाई एक बेहद ही आसान प्रक्रिया है। बतादें, कि फसल कटाई के लिए तैयार तब होती गई जब भुट्टों से दूधिया पदार्थ निकलने लगता है। सुबह अथवा शाम में स्वीट कॉर्न की कटाई करें, इससे फसल अधिक समय तक तरोताजा रहेगी। तुड़ाई पूर्ण होने पर इसको मंडियों में बेच दें। स्वीट कॉर्न को ज्यादा दिनों तक स्टोर करके न रखें, क्योंकि इससे इसकी मिठास कम हो जाएगी।

 

किसान इन बातों का विशेष ख्याल रखें

  • जब आप इसकी खेती करते हैं, तो आप मक्का की उन्नत किस्मों को ही चुनें।
  • कीट-रोधी किस्मों को कम समयावधि में पकना चाहिए।
  • खेत की तैयारी के दौरान जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें, ताकि फसल में जल भराव न हो।
  • स्वीट कॉर्न वैसे तो संपूर्ण भारत में उगाई जाती है, परंतु उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा पैदावार होती है।
  • स्वीट कॉर्न की बुवाई रबी एवं खरीफ दोनों ही सीजनों में की जा सकती है।

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के की खेती (Maize farming information in Hindi)

मक्के को भुट्टा (Maize or Corn) भी कहा जाता है, बारिश में तो लोग बड़े ही शौक से भुट्टे को खाते हैं। मक्के से जुड़ी सभी आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने:

मक्के की खेती:

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार मक्का एक खाद्य फसल है, मक्का मोटे अनाजों के अंतर्गत आता है। मक्के की फसल भारत के मैदानी भागों में उगाई जाती है तथा 2700 मीटर उँचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों तक फैली हुई है। मक्के की फसल के लिए सभी प्रकार की मिट्टी उपयोगी होती है परंतु किसान दोमट मिट्टी का चयन करते हैं। मक्के को खरीफ ऋतु की फसल में भी उगाया जाता है। मक्के में आवश्यक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट का बहुत अच्छा स्त्रोत मौजूद होता है। आहार के रूप में मक्का बहुत ही महत्वपूर्ण और अपनी एक अलग जगह बनाए हुए हैं।

मक्के से बनने वाली डिशेस:

मक्के से विभिन्न प्रकार की डिशेस बनती है जैसे: गांव में मक्के को अच्छी तरह से सुखाकर पीसने के बाद गुड़ मिलाकर खाया जाता है, मक्के से हलवा बनता हैं, मक्के की रोटी गांव में लोग खाना बहुत पसंद करते हैं, मक्के को बारिश के दिनों में भून कर खाया जाता है, मक्के को स्वीट कॉर्न  (Baby Corn) के रूप में भी लोग काफी पसंद करते हैं, सभी प्रकार की डिशेस बनाने में मक्के का इस्तेमाल किया जाता है।

मक्के की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और भूमि:

मक्के उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु उष्ण और आर्द की जलवायु होती है जो फसलों को पनपने में सहायता करती है। मक्के की फसल के लिए जल निकास वाली भूमि सबसे आवश्यक मानी जाती है। खेत तैयार करते समय भूमि में जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना उपयुक्त होता है। पहली बारिश होने के बाद हैरो के पश्चात पाटा चलाना उपयुक्त है। 

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मक्के की फसल के लिए खेत को तैयार करें:

मक्के की फसल के लिए खेत को भली प्रकार से जुताई की आवश्यकता होती है। भूमि को जोत कर समतल कर ले, हरो का इस्तेमाल करने के बाद पाटा चला दे। अगर आप गोबर की खाद का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो सड़ी हुई खाद को अच्छी तरह से खेत की आखरी जुताई करने के बाद मिट्टियों में मिला दे।

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मक्के की फसल की बुवाई का समय:

मक्के की फसल की विभिन्न विभिन्न प्रकार की बुवाई इन के बीजों पर आधारित होती है और किस समय किस बीज को बोना चाहिए वह किसान उचित रूप से जानते हैं। इसीलिए फसल बुवाई का समय एक दूसरे से भिन्न होता है:

  • किसान मक्के की खरीफ फसल की बुवाई का समय जून से जुलाई तक का निश्चित करते हैं।
  • मक्के की रबी फसल की बुवाई का समय अक्टूबर से नवंबर तक का होता है।
  • मक्के की जायद फसलों की बुवाई का समय फरवरी से मार्च तक का होता है।

मक्के की फसल की बुवाई का तरीका:

मक्के की फसल बुवाई करने के लिए अगर आपके पास सिंचाई का साधन पहले से मौजूद है, तो आप 12 से 15 दिन पहले ही मक्के की बुवाई करना शुरू कर दें। मक्के की बुवाई आप बारिश शुरू होने पर भी कर सकते हैं। अधिक मक्के की पैदावार प्राप्त करने के लिए फसल की बुवाई पहले करे। बीज बोने के लिए इसकी गहराई लगभग 3 से 5 सेंटीमीटर तक रखना उपयोगी होता है। मक्की की बुआई करने के बाद एक हफ्ते के बाद मिट्टी चढ़ाना आवश्यक होता है। बुवाई किसी भी तरह से कर सकते हैं लेकिन पौधों की संख्या 55 से 80 हजार हेक्टेयर के हिसाब से रखनी चाहिए।

मक्के की फसल के लिए उपयुक्त खाद का चयन:

मक्की की फसल के लिए सबसे उपयोगी और आवश्यक सड़ी हुई गोबर की खाद होती है। कभी-कभी किसान उर्वरक खाद, नत्रजन फास्फोरस, पोटाश आदि का भी इस्तेमाल करते हैं।

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मक्के की फ़सल के लिए निराई-गुड़ाई:

मक्के की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए निराई गुड़ाई बहुत ही आवश्यकता होती है। या निराई गुड़ाई आपको लगभग बीज बोने के बाद 10 से 20 दिनों के अंदर कर देनी चाहिए। यह निराई गुड़ाई आप किसी भी प्रकार के हल द्वारा या फिर ट्रैक्टर द्वारा कर सकते हैं। कुछ रसायनिक दवाओं का भी इस्तेमाल करें जैसे: एट्राजीन नामक निंदानाशक का इस्तेमाल करना उपयुक्त होता है। इसका इस्तेमाल अंकुरण आने से पहले 600 से 800 ग्राम तक 1 एकड़ की दर पर पूरे खेतों में भली प्रकार से छिड़काव करना उचित होता है। निराई गुड़ाई के बाद 20 से 25 दिनों के बाद मिट्टी चढ़ाएं।

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मक्के की फसल की सिंचाई:

मक्के की पूरी फसल को लगभग 400 से 600 मिनिमम पानी की जरूरत पड़ती है। मक्के की फसल की सिंचाई पुष्पन दाना भरने के टाइम करते हैं।सिंचाई करते समय हमेशा जल निकास की व्यवस्था को बनाए रखना बहुत जरूरी होता है।

मक्के की फ़सल को कीट व रोगों से सुरक्षित रखने के उपाय:

  • मक्के की फसलों को सुरक्षित रखने के लिए सिंचाई के पानी में क्लोरपाइरीफास 2.5 प्रति लीटर मिलाकर अच्छी तरह से सिंचाई करें।
  • मक्के के तने और जड़ों को सुरक्षित रखने के लिए लगभग आपको 10 लीटर गौमूत्र लेना है। उसमें आपको नीम के पत्ते, धतूरे के पत्ते, करंज के पत्ते, डालकर अच्छी तरह से उबाल लेना है। पानी जब 5 लीटर बजे तब उसे ठंडा कर अच्छी तरह से छान ले। अरंडी के तेल में लगभग 50 ग्राम सर्फ़ मिलाकर तनें और जड़ों में डाल दें।
  • मक्के की फसलों को सूत्रकृमि से बचाने के लिए फसल बोने के एक हफ्ते बाद 10 किलोग्राम फोरेट 10g का इस्तेमाल करे।
  • मक्के की फसल को तना छेदक कीट से सुरक्षित रखने के लिए कार्बोफ्यूरान 3g 20 किग्रा, फोरेट10% सीजी 20 किग्रा, डाईमेथोएट 30%क्यूनालफास 25 का इस्तेमाल कर छेदक जैसी कीटों से फ़सल की सुरक्षा करे।

मक्के की फसल की उपयोगिता:

मक्के की फसल में कार्बोहाइड्रेट का बहुत ही अच्छा स्त्रोत होता है। इसीलिए यह सबसे महत्वपूर्ण फसल मानी जाती है। मक्के की फसल मनुष्य और पशु दोनों के आहार का सबसे महत्वपूर्ण साधन होता है। मक्के की फसल औद्योगिक दृष्टिकोण में बहुत ही उपयोगी होती हैं। मक्के की फसल को सुरक्षित रखने के लिए भिन्न प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए। ताकि उनमें किसी प्रकार के कीड़े कीट ना लग सके। मक्के की फसल से किसानों को विभिन्न प्रकार का लाभ पहुंचता है आय निर्यात का साधन बना रहता है। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल मक्का पसंद आया होगा। यदि आप हमारी दी हुई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

स्वीट कॉर्न की खेती ने बदली प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान की किस्मत

स्वीट कॉर्न की खेती ने बदली प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान की किस्मत

आज हम आपको स्वीट कॉर्न की खेती से हुए सफल किसान दिनेश चौहान के बारे में बताऐंगे। इस किसान ने अपने अथक परिश्रम के परिणाम स्वरूप एक ऐसा मुकाम हांसिल किया गया, जो कि हर कोई नहीं कर पाता है। ये किसान आज स्वीट कॉर्न की खेती सहित बाकी फसलों से वार्षिक 40 लाख रुपये तक की आमदनी कर रहे हैं।

वर्तमान में भारत के अंदर बहुत सारे ऐसे किसान हैं, जो आधुनिक तरीके से खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर रहे हैं। ऐसे उन्हीं किसानों में शुमार है, प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान, जो हरियाणा के सोनीपत जनपद के मनौली गांव के निवासी हैं। दिनेश चौहान के मुताबिक, उनके गांव को स्वीट कॉर्न विलेज के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि उनके गांव में अधिकांश किसान स्वीट कॉर्न की खेती किया करते हैं। दिनेश चौहान का कहना है, कि वह आधुनिक तरीके से खेती कर वार्षिक शानदार मुनाफा प्राप्त कर रहे हैं। वह वर्ष 1996 से कृषि क्षेत्र से संबंधित हैं। वहीं, खेती-किसानी से ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं। चौहान के अनुसार, उनके पास 30 एकड़ कृषि योग्य जमीन है, जिस पर वह कृषि करते हैं।

दिनेश चौहान ने 1998 में इन फसलों का उत्पादन किया 

दिनेश चौहान का कहना है, कि उन्होंने 1998 में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन शुरू किया था। इससे पूर्व वह पारंपरिक फसलों, जैसे- मक्का, गन्ने और गेहूं की खेती किया करते थे। चौहान ने 1998 में स्ट्रॉबेरी की खेती करना शुरू किया, क्योंकि वह खेती को एक उच्च स्तर पर ले जाना चाहते थे। उन्होंने बताया कि उस समय में लोग खेती को छोटी दृष्टि से देखा करते थे। किसानी को बहुत ही छोटा दर्जा दिया जाता था और पढ़े-लिखे युवा इस तरफ नहीं आकर, नौकरियों की तरफ भागते थे। वहीं, इसमें काफी स्कोप था, जिसके पश्चात उन्होंने इस दृष्टिकोण को बदलने की सोची और आधुनिक तरीके से खेती का प्रारंभ किया।

स्वीट कॉर्न की खेती ने दिनेश चौहान को दिलाई पहचान 

प्रगतिशील किसान दिनेश चौहान का कहना है, कि "उन्होंने धीरे-धीरे धान और गेहूं की खेती कम की, और स्ट्रॉबेरी के खेती पर ज्यादा जोर दिया। उन्होंने बताया कि उस समय किसान स्ट्रॉबेरी के खेती या उससे जुड़ी तकनीकों के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन, धीरे-धीरे कुछ किसान उनके साथ जुड़े और उन्होंने सभी को इसकी खेती सिखाई। इसके कुछ सालों बाद उन्होंने बेबी कॉर्न या स्वीट कॉर्न की खेती शुरू की, जो इतनी सफल रही है की आज उनका गांव देश भर में स्वीट कॉर्न विलेज के नाम से जाना जाता है। साथ ही, गांव के किसानों को इसकी खेती से काफी शानदार मुनाफा अर्जित हो रहा है।

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उन्होंने बताया कि वह 2001 से स्वीट कॉर्न की खेती कर रहे हैं, जब देश में लोग इसके बारे ज्यादा नहीं जानते थे। उन्होंने कहा है, कि शुरुआत में लोग इसे अमेरिकन कॉर्न समझ कर खाते थे और लोगों को काफी बाद में जाकर इस बात की जानकारी हुई कि ये अमेरिका नहीं अपने ही देश के एक गांव में उगाई जा रही है। उन्होंने बताया कि शुरुआती समय में स्वीट कॉर्न की खेती के दौरान उन्हें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा। लोग न इसके बारे में ज्यादा जानते थे और न ही इसका बाजार था। लेकिन, धीरे-धीरे उन्होंने मंडियो में अपनी उपज भेजनी शुरू की, लोगों को इसके बारे में बताया और आज वह इसके माध्यम से वार्षिक अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। 

किसान वार्षिक लाखों रूपए की आय कर रहा है 

अगर लागत एवं मुनाफे की बात की जाए, तो स्वीट कॉर्न की एक एकड़ की खेती से तकरीबन 25 से 30 हजार रुपये की लागत आ जाती है, जिससे वह प्रति एकड़ एक से डेढ़ लाख रुपये तक मुनाफा हांसिल कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त, खेती में उन्हें हरियाणा सरकार की योजनाओं और कृषि व बागवानी विभाग की भी सहायता मिलती रहती है। अगर इस हिसाब से देखें तो वे वार्षिक 40 लाख रुपये तक की आमदनी कर लेते हैं। उन्होंने अन्य किसानों को ये संदेश दिया की वे भी तकनीकी खेती से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति को सशक्त बना सकते हैं। किसान मांग के अनुसार फसलीय उत्पादन करें।